शहादत पर नेतागिरी बंद कंरे

शहादत पर नेतागिरी बंद करे
नक्सलवाद कोई मुद्दा नहीं है जिस पर नेतागिरी किया जाये ,ये मानवता को कलंकित करने वाला आतंक वाद है इसका मुकाबला करने सरकार के साथ पुरे समाज को सहयोग करना होगा ,,कहा जाता है की डायन भी ७ घर छोड़ देती है ,लेकिन..... ये नेता ये भी नहीं देखते की कौन सा मुद्दा है ,,सैकड़ो जवान काल के भेंट चड़ गए ,सैकड़ो मांगे सुनी हो गई ,बच्चे अनाथ हो गए ,बुजुर्गो का सहारा छीन गया ,हर बड़ी घटना के बाद रटा हुआ बयान दोहराया जाता है चुक हो गई ,,आखिर आपके चुक की खामियाजा हमारे जवान कब तक भोगेंगे ,घटना के बाद तुरंत उस चुक को क्यों नहीं सुधारा जाता ,घटना के २;४ दिन खूब हो हल्ला मचाया जाता है सरकारी तंत्र सक्रीय हो जाता है एक से बड कर एक बयान बाजी बड़ा अधिकारी स्थल निरिक्षण कर जायजा लेगे ,दोसी दण्डित किया जायेगा ;;न तो आज तक कोई चुक उजागर हुई न कोई दण्डित हुआ ,,कुछ दिन बाद सब सामान्य हो जाता है फिर जब कोई घटना घटती है तब फिर यही बाते दोहराई जाती है ,,कब तक ये तमाशा चलेगा इसका जवाब किसी के पास अब तक तो नहीं है .विपक्ष का एक ही काम है स्तीफा मांगना और बंद करना .जो कतई इस आंतकवाद का हल हो नहीं सकता हा जरुर ये करके विपक्ष अपनी जिम्मेदारी निभाने का ढोंग कर जनता के सामने हीरो बनने का सवांग रच सकती है ,जबकि बंद करने से किसी का भला नहीं होता आपने बंद कराने की घोषणा कर दी कुछ नेता ac कार में बैठ कर शहर भ्रमण किये ,और ac शयन कक्ष में जा कर सो गए ,,लेकिन उसका खामियाजा उस गरीब को जो दिन भर ,चाय ,पान,सब्जी, बेचकर ,रिक्शा ,ठेला , चलाकर मजदूरी करके अपने परिवार का पेट भरता है उसको भुगतना पड़ता है ,हो सकता है उस दिन उसके परिवार को खाना नशीब न हो ,कुछ करना है तो उस चुक का हल ढूढ़ कर सरकार के नुमायन्दो को उनका उसली चेहरा दिखाए ,आपके केंद्र के सरकार को जगाये ,क्युकी ये अब पुरे देश की समस्या है गृह युद्ध की स्तिथि निर्मित हो चुकी है केवल राज्य सरकार अकेले नहीं लड़ सकती ,इस युद्ध के लिए इक्षा शक्ति की आवश्यकता है ,राज्य सरकार के पास इक्षा तो है पर शक्ति नहीं है ,केंद्र के पास शक्ति है पर इक्षा नहीं दिखती,केंद्र के पास से शक्ति लाने के लिए विपक्ष को अपनी वास्तविक भूमिका निभानी चाहिए ,कोंगरेश सरकार के केन्द्रीय मंत्री चिदंबरम ने कहा इस समस्या के लिए पूर्व वर्ती सरकारों ने ध्यान नहीं दिया ,उनका सीधा इशारा कांग्रेश के पूर्व के तीनो मुख्य मंत्रियो पर था कड़वा सच भी है बस्तर में नक्सल वादी २० शाल पहले पाव पसार चुके थे क्यों सरकारे खमोश थी ,बस्तर विकाश के नाम पर अरबो खरबों रुपये आये ,,कहा गए ,आज भी बस्तरिया बुनियादी सुविधाओ के लिए तरश रहा है विकाश की बात तो बैमानी है मुझे ये लिखने में कतई संकोच नहीं की .शालो बाद जब तक ये रोग नाशुर बन चूका था डॉ रमण सरकार ने गंभीरता दिखाई छत्तीसगढ़ के तीसरे गृह मंत्री बृज मोहन अग्रवाल ने कुर्शी सम्हालते ही नक्सलियों के खिलाफ जंग का ऐलान किया 'जबकि mp व cg सरकार में छत्तीसगढ़ के दो गृहमंत्री बनाये गए थे' सरकार बनाने के महज ३ माह बाद ही जगदलपुर में ध्वजा रोहण कर डॉ रमण सिंह ने नक्लियो को चुनोती दी थी ,व नक्सली मुक्त बस्तर की कल्पना की ,,उसके बाद लगातार छत्तीसगढ़ सरकार नक्सलवाद से लड़ रही है डॉ साहब के पास सेना तो है लेकिन प्रधान मंत्री , सेनापति,सेना नायक .... शुभानअल्लाह.......... क्या इनके भरोसे जंग लड़ा जा सकता है प्रदेश का प्रधान मंत्री ,< गृह मंत्री >जो अपने विभाग को नहीं सम्हाल पा रहे,, आये दिन पोलिश विभाग और मंत्री जी के रिश्ते क्या है,,,,, आम आदमी भी शर्मिन्दिंत है तो दूशरा सेनापति <>अपने कविताओ और सिगरेट की चुस्की में मस्त अपने अधीनस्थ सेना नायको के आपसी झगडे निपटा नहीं प़ा रहे है उनसे क्या उम्मीद की जाये कोई सोच नहीं कोई योजना नहीं ,योजना बन जाये तो अमल करने की छमता नहीं ,,,,,बनी हुई पर लंबित योजनाये ,,,,परिवन विभाग से मॉल पानी डकार कर वापस आने वाले पोलिश वालो को बस्तर पदस्थ किया जायेगा ,,कितने बस्तर गए ?,,हर पोलिश वालो को बस्तर में १० शाल गुजारना होगा 5o शाल से काम उम्र के स्वस्थ लोग भेजे जायेंगे सूचि में अधिकांश ४९_५० कुछ बीमार < सुगर ,bp > ,तो कुछ ऐसे जो पहले बस्तर में रहकर नक्सलियों से दुश्मनी ले चुके है ,,हमेशा इनका खुपिया तंत्र फेल रहने के बाद भी मुखबिरी पर हर शाल ५ _६ करोड़ खर्च ,जवानों को सही दिशा निर्देश में कमी ,बस्तर के भौगोलिक स्तिथि व दुश्मन की सही जानकारी पर प्रसिक्षण नहीं ,जवानों को बुनियादी सुविधाए उपलब्ध न करा पाना ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,